Monday, January 5, 2009

मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये

मै छोड़ के निकला था जो, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये
थक कर मैं सोता था जहाँ, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये
थक जाता हूँ मैं और भी इन मखमली दीवानों पे
मीठी सी नींद पाने को, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये

मेरी राह के इन पत्थरों ने शरीर मेरा तोड़ा है
तुझसे बिछड़ने के दर्द के आगे ये दर्द थोड़ा है
तुझे फिर गले से लगाने को, इस दर्द को मिटाने को
सब दूरियाँ हटाने को, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये

इन कागज़ों के कारखाने की मशीन मै बन गया
इन औहदों की, कुर्सियों की गंदगी में सन गया
खुद को इन पापों से छिपाने को, ये गंदगी मिटाने को
अच्छा इंसान कहलाने को, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये

और सारे बिस्तर बनते हैं लकड़ी या चाँदी या सोने से
तेरी गोद वो बिस्तर है जो मुझे रोकती है रोने से
दुनिया के गम भुलाने को, तेरा प्यार फिर से पाने को
पविञ हो जाने को, मुझे माँ वो बिस्तर चाहिये

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