Monday, January 5, 2009

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

सारे ठहाके वहाँ सामने कौलेज के जँगले पर मिलने आये थे मुझसे
खुशियाँ भी सभी यहीं आस पास मंडरा रहीं थी
छोटे पिल्लों कि तरह लडते खेलते हवा और पेड के पत्ते
वो ऊबड खाबड सा तिकोनिय अड्डा हमारा
और वो सारे चहरे जो मेरे अपने ना थे, फिर भी कोई रिश्ता था उनसे

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

दुनिया की सबसे महंगी, वो ढाई रुपये की चाय
जिसको पीने की चाह में दोस्त का जन्मदिन घोषित किया जाता था
वो लाल रंग के प्लास्टिक के मेज और कुर्सियां और वो सफेद टाइल्स
वो पानी के जूस मे मिली हुई मौसमी का स्वाद
जिसे वो नाटा हसमुख आदमी कोल्डरिंक की र्केट पर खडे होकर बनाता था

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

वो खुले दिल वाला बडा सा मैदान, जो सर्दी के मौसम में,
घास के सोफे पर सब मेहमानों को बैठाकर गरमा गरम धूप की किरनें परोसता था
वो मनमौजियों का सिंहासन, वो सिढियाँ जहां आती जाती तितलियों के रंग
किसी आईने पर से लड कर आँखों पर चमकते थे
और वो बूढा सा घने घुंगराले बालों वाला पेड, वो बारिश की गाड़ी का स्पीडर्बेकर,
जिसने दूर तक मेरे आसमान पर अवैध कब्ज़ा कर रखा था

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

वो लाइर्बेरी में ढेर सारे किताबों के रैक, जिनके पीछे मै किताबों के
साथ लुका छिपी खेलता था
और जब हम थक जाते तो बडे से रीडिंग हौल में मैं उनसे घंटों बाते किया करता था
और वो छोटी सी बच्ची, वो फोटोकापी की दुकान, जो सहमी सी, दुबकी सी बैठी थी
वो मेरे कपड़ों पर लाल रंग का गुलाल जो दीवारों को गले लगाने से लग जाता था
और वो मेरा उदार, नर्मदिल कमरा, जो मुझे अपनी आगोश में जकड़ कर मुझे सुला देता था

कल मै मिला था उनसे यहीं तो थे सारे

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