Monday, January 5, 2009

इब्तिदा

उस मुस्कुराहट की इब्तिदा पे इस मोहब्बत का अंजाम होता है
पर लौ से मिल जाऐ कोशिश है ये मुकरर्र, दीवानों का यही ईमान होता है
तुम हमारे हो नही, गैर की चौखट का ताना, बेदर्द इल्ज़ाम होता है
तुम क्या जानो ओ बेखबर आशिकी का क्या मुकाम होता है
लुट गये हज़ारों मजनू, खाक हो गये सारे आशिक
इश्क की वफा का शायद यही ईनाम होता है
उस मुस्कुराहट की इब्तिदा पे इस मोहब्बत का अंजाम होता है

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