Monday, April 27, 2009

सपने

ऐक सूखे दिन
कुछ सपने खरीदने निकल पडा मैं
पैदल पहुँचा मीलों चलकर
देखा, सैकड़ों लोगों का मेला सा कुछ
चुप चाप सपने खरीद रहा था
सब अपने थैलों को भरकर
ऐक दूजे से छुपा कर लेकिन
रंग बिरंगे सपने हासिल कर रहे थे
मैने दुकानदार से ऐक छोटे से सपने का दाम जब पूछा
बोला बाबूजी छोटे से इस सपने को क्या लेते हो
तुमको ऐक बडा सा, खूबसूरत सा सपना दिखाता हूँ
उल्टे कदम लौट गया मैं, सब सपने बेचने वालों से बचकर
वापिस अपने अंधेरे कमरे की तरफ निकल आया मै.

ऐक बार बडा सा सपना खरीदा था मैने
बहुत महंगे पडते हैं ये खूबसूरत सपने...

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