Tuesday, April 7, 2009

रात

रात समंदर की तरह, अंधेरी, गहरी बहती ही रही
नींद आयी ही नही, सुबह हुई ही नही ।

चांद भी देखता रहा, कुछ ना बोला, कुछ ना किया
बादलों की आढ में छुप कर बहुत रोया होगा ।

ओंस भी पत‌‌्तों से गले मिल के रुआसी सी हुई
मैं ही बस अकेला रहा, मैं ही बस नहीं रोया ।

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