रात समंदर की तरह, अंधेरी, गहरी बहती ही रही
नींद आयी ही नही, सुबह हुई ही नही ।
चांद भी देखता रहा, कुछ ना बोला, कुछ ना किया
बादलों की आढ में छुप कर बहुत रोया होगा ।
ओंस भी पत्तों से गले मिल के रुआसी सी हुई
मैं ही बस अकेला रहा, मैं ही बस नहीं रोया ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment